शिव आरती का अर्थ और महत्व

शिव के तीन स्वरूप।आस्था, श्रद्धा और विश्वास

परमात्मा शिव मे ही संपूर्ण सृष्टि समायी है। शिव ही ब्रह्मा है शिव ही विष्णु है।शिव ही महेश है। ऊँ ही शिव का शब्द रुप है। आइए इस पोस्ट में हम शिव आरती का अर्थ और उसका महत्व समझते है।

भगवान शिव जी की आरती में शिव स्वरूप की महिमा को भलीभाँति समझाया गया है।हम भी शिव जी की त्रिगुणात्मक छवि को समझने का प्रयास करे।

शिव आरती का अर्थ

एकानन चतुरानन पंचानन राजे,
हंसाशन गरुड़ाशन बृषवाहन साजे।

यहाँ एकानन यानि विष्णु जी जिनका एक मुख है। चतुरानन यानि ब्रह्मा जी जिनके चार मुख है।पंचानन यानि महेश जिनके पांच मुख है। ब्रह्मा जी जिनका वाहन हंस है। विष्णु जी का वाहन गरुड़ है और महेश जिनका वाहन नंदी है। ऐसे चराचर के स्वामी शिव जी की हम वंदना करते है।

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज ते सोहे,
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे।

जिनकी दो भुजाएँ है वो ब्रह्मा है। चार भुजाधारी विष्णु जी है। जिनकी दस भुजायें है वो महेश है। शिव जी की त्रिमूर्ति में तत्व प्राण और जीवात्मा के स्वरूप त्रिभुवन जन को मोहित कर सभी का कल्याण करने वाले सदा शिव की हम वंदना करते हैं।

अक्षमाला वनमाला मुंड माला धारी,
चन्दन मृगमद चंदा भाले शुभ कारी।

श्री ब्रह्मा जी के गले में रुद्राक्ष की माला शोभायमान है। विष्णु जी के गले का हार वनमाला पुष्पमाला से सुशोभित है। श्री महेश मुंड माला धारन किये हुए है।माला रुपी महामाया माँ सभी का कल्याण करने वाली है। ब्रह्मा जी के ललाट पर चंदन, विष्णु जी के ललाट पर मृगमद कस्तुरी तिलक है।तथा महेश अपने मस्तिष्क पर चन्द्रमा को धारन किये हुये सभी के लिए कल्याण कारी शुभ कारी है। जिनके दर्शन मात्र से पतित भी पावन हो जाता है। ऐसे त्र्यम्बकेश्वर सदा शिव को नमन।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे,
सनकादिक गरुणादिक भुतादिक संगे।

श्वेत वस्त्र को धारन करने वाले ब्रह्मा जी, पीले वस्त्र धारण करने वाले विष्णु जी, एवं वाघंबर धारन करने वाले महेश है। ब्रह्मा जी के अनुचर सनकादिक है। विष्णु जी के सेवक गरुणादिक है और भगवान महेश के साथ समस्त भूता दिक सेवा में तत्पर रहते हैं। ब्रह्मा विष्णु महेश का समुच्चय ही शिव है। ऐसे कृपा शंकर महादेव को सत् सत् नमन।

कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूल धरता,
जग करता जग हरता जग पालन करता।

ब्रह्मा जी के हाथ में कमंडल, विष्णु जी के हाथ में चक्र और महेश के हाथों का त्रिशूल संसार के देहिक, दैविक और भौतिक ताप का नाश करने वाला है। ब्रह्मा जी जग की उत्पत्ति करते हैं, विष्णु जी पालनहार है तो महेश ईस संसार से मुक्त कर नया जीवन देकर सभी पर अनुग्रह करते हैं। ऐसे भूत भविष्य और वर्तमान के संचालक त्रिमूर्ति शिव जी की हम अराधना करते हैं।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव जानत अविवेका,
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनो एका।
ऊँ हर हर महादेव.

कोई भी विवेक हीन व्यक्ति त्रिमूर्ति शिव की महिमा को जान नही सकता। प्रणवाक्षर ऊँ में अकार, ब्रह्मा मकार विष्णु और उकार, महेश ये तीनो एकाकार है।
ऐसे सत्यं शिवम् सुन्दरम् शिव जी की हम भाव भरी महिमा गाकर आरती करते हैं।

ऊँ नमः शिवाय
शिवांश

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